Sunday 3 June 2018

पर्यावरण संरक्षण से मयूर अभयारण्य बना सांगानेर दादाबाड़ी


पर्यावरण संरक्षण से मयूर अभयारण्य बना सांगानेर दादाबाड़ी 
Peacock Sanctuary at Sanganer Dadabadi 

सांगानेर की जैन दादाबाड़ी अब मयूरों का अभयारण्य बन चुकी है. पर्यावरण संरक्षण के उपायों से ऐसा संभव हुआ है. सांगानेर कभी जयपुर शहर से बहुत दूर हुआ करता था और यहाँ पर घने पेड़ों से घिरा हुआ प्राकृतिक वातावरण था. परन्तु पिछले कुछ दशकों में इसने एक शहर का रूप ले लिया है और यहाँ कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं. प्राकृतिक वातावरण का अभाव होने से यहाँ से वन्य जीव जंतु भी लुप्त होने लगे हैं.

Peacock sitting above a tree at Sanganer Dadabadi Jaipur
सांगानेर दादाबाड़ी, जयपुर में पेड़ पर बैठा मयूर 

Peacock moving at the roof Sanganer Dadabadi Jaipur
सांगानेर दादाबाड़ी, जयपुर में छत पर घूमता मयूर

Peacock moving at the garden Sanganer Dadabadi Jaipur
सांगानेर दादाबाड़ी, जयपुर में पेड़ों के नीचे घूमते मयूर
 इस कंक्रीट के जंगल के बीच में सांगानेर की प्राचीन दादाबाड़ी में आज भी काफी पेड़ बचे हुए हैं और यह स्थान मोर, तोते आदि पक्षियों के लिए सुरक्षित स्थली है. आज यहाँ पर १५० से २०० मोर हैं जो की इस स्थान की सुंदरता को चार चांद लगाते हैं. यहाँ पर प्रतिदिन सुबह शाम ज्वार, बाजरा, मक्का आदि दाना डाला जाता है जिससे मोर, तोते, कबूतर और गिलहरियों का पेट भरता है. पानी की भी समुचित व्यवस्था की गई है जिससे यह स्थान एक अभयारण्य की तरह विकसित हो रहा है.

सांगानेर की श्री जिन कुशल सूरी दादाबाड़ी अत्यंत प्राचीन है. अकबर प्रतिबोधक चतुर्थ दादा श्री जिन चंद्र सूरी जी की प्रेरणा एवं सदुपदेश से बीकानेर निवासी मंत्रीश्वर करमचन्द बच्छावत ने १६ विन शताब्दी में इस दादाबाड़ी का निर्माण करवाया था. इस दादाबाड़ी में श्री जिन दत्त सूरी, जिन चंद्र सूरी, जिनपति सूरी आदि के भी प्राचीन चरण हैं.

Jyoti Kothari at Peacock sanctuary Sanganer Dadabadi
सांगानेर दादाबाड़ी, जयपुर में घूमते हुए लेखक व अन्य युवा 

Peacock sitting on a tree at Sanganer dadabadi sanctuary
सांगानेर दादाबाड़ी, जयपुर में पेड़ पर बैठा मयूर
  जैन आगमों एवं शास्त्रों में बहुतायत से उल्लेख मिलता है की तीर्थंकर परमात्मा एवं आचार्य भगवंतों का प्रवचन उपवनों में होता था. उपवन एक बगीचे जैसा स्थल होता है. शहर से दूर एकांत स्थल में शांत प्राकृतिक वातावरण में अध्यात्म की लहर जगती थी. दिगंबर जैनों की नसियाँ एवं श्वेताम्बरों की दादाबाड़ी भी बाग़ बगीचों के बीच ही होती थी. वस्तुतः दादाबाड़ी में बड़ी शब्द का अर्थ ही बगीचा होता है. परन्तु आज सबकुछ बदल गया है और हम पेड़ पौधे और प्राकृतिक वातावरण से दूर होते चले जा रहे हैं. 

आज सभी को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना आवश्यक हो गया है अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब ग्लोबल वॉर्मिंग एवं ग्रीन हाउस इफ़ेक्ट हमे निगल लेगा. इसके लिए विशेष कर युवाओ को जागृत करना बेहद आवश्यक है. युवाओं के लिए चलाए जा रहे विशेष कार्यक्रम में आज 3 जून रविवार को सुबह 6 बजे ही 30-40 युवा, महिलाएं एवं बच्चों ने सांगानेर दादाबाड़ी पहुच कर दर्शन व गुरु इकतिसा पाठ किया। इसके बाद संरक्षित मोर, तोते एवं कबूतरों को दाना खिलाया। सुंदर मोर एवं तोतों को प्राकृतिक वातावरण में विचरते देख कर सभी बहुत आनंदित हुए।  खास कर छोटे बच्चों को बहुत ही मज़ा आया।

Peacock sitting on a tree at Sanganer dadabadi sanctuary
सांगानेर दादाबाड़ी, जयपुर में पेड़ पर बैठा मयूर

Peacock sitting in a dry area at Sanganer dadabadi sanctuary
सूखे स्थान में बैठा मोर 

Peacock moving in the bush at Sanganer dadabadi sanctuary
झाड़ियों के बीच घूमते मोर 

पेड़ की डाली पर बैठा मोर 
दादाबाड़ी से सभी शहर के प्राचीन मंदिर पहुचे। अब तक 10-15 लोग और जुड़ चुके थे। यहां पर ज्योति कोठारी ने सभी को दोनों मंदिरों के इतिहास, कला एवं स्थापत्य की जानकारी दी। सभी मे अपने ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण व संवर्धन की भावना बलवती हुई। इसके बाद चाय-नाश्ता व स्नान कर सबने भक्तिपूर्वक स्नात्र पूजा किया। इस तरह आज का भक्ति, पर्यावरण, जीवदया एवं इतिहास से जुड़ा यह कार्यक्रम सानंद सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम में खरतरगच्छ संघमंत्री के अतिरिक्त कार्यकारिणी सदस्य श्री पारस जी डागा, श्री अशोक जी डागा, पूर्व सांस्कृतिक मंत्री श्री राजेन्द्र जी भंसाली, मानसरोवर समाज के पूर्व मंत्री श्री महेश जी महमवाल, खरतरगच्छ युवा परिषद के संयुक्त मंत्री श्री अभिषेक राक्यान आदि भी उपस्थित थे। प्रति रविवार सम्पन्न होनेवाले युवा कार्यक्रमों में सम्मिलित होने की विनम्र विनती है।

सभी को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होना आवश्यक है अन्यथा यह पृथ्वी रहने लायक नहीं रहेगी. अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, पानी बचाएं और जीवों का संरक्षण करें.

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Thanks,
Jyoti Kothari

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