आमेर के चन्द्रप्रभु मंदिर की प्राचीन चित्रकारी
खरतर गच्छ संघ, जयपुर द्वारा संचालित श्वेताम्बर जैन मंदिरों में आमेर का चन्द्रप्रभु (चंदाप्रभु) मंदिर चित्रकला के लिए अपनी विशेष पहचान रखता है. राजपुताना या आमेर शैली की चित्रकला का उत्कृष्ट निदर्शन इस मंदिर में देखने को मिलता है. यह सभी चित्र भित्तिचित्र श्रेणी के हैं. १८ वीं सदी तक आमेर राजपुताना की राजधानी हुआ करती थी और उस समय का यह जैन मंदिर अपनी कला के लिए प्रख्यात है.
मंदिर के मुख्यद्वार पर नयनाभिराम चित्रकारी दिखती है. यद्यपि यहाँ पर कोई मनुष्यकृति नहीं है फिर भी यह मुग़ल-राजपूत शैली की चित्रकला का एक श्रेष्ठ नमूना है. मंदिर का रंगमंडप अनेक चित्रों से सुशोभित है जिन्हे आकर्षक प्राकृतिक रंगों से बनाया गया है. अनेक स्थानों पर सोने का काम भी दृष्टिगोचर होता है.
इन चित्रों की विशेषता कला पारखियों को सदियों से अपनी ओर आकर्षित करती रही है. मूल गंभारे (गर्भ गृह) के बहार की दीवार में चार मनमोहक चित्र बने हुए हैं जो काल के प्रभाव से जीर्ण हो रहे हैं. इनमे समवसरण, अष्टापद तीर्थ आदि के चित्र बने हुए हैं.
(श्री अनिल जी बैद ने चार फोटो खींच कर भेजा है)
मूलनायक चन्द्रप्रभु एवं चित्रकारी |
प्राचीन चित्रकला आमेर जैन मंदिर |
इसी प्रकार से इसमें दुर्लभ पीले रंग (गाय को नीम की पत्तियाँ खिलाकर पीली मिट्टी पर गोमुत्र कराने की विधि से तैयार रंग को गौगुली, एक प्रकार का पीला रंग, कहा जाता था।) का प्रयोग हुआ है, गोमूत्र से बनने वाला यह रंग अब नहीं बनता है और जिनके पास अभी भी यह रंग मिलता है वो इसकी कीमत ५००० रुपये प्रति ग्राम तक मांगते हैं अर्थात एक ग्राम रंग का मुल्य लगभग दो ग्राम सोने के बराबर! रंगमंडप की दीवारों में आरस के ऊपर सुन्दर नीले रंग की धारियां बनी हुई है. मोर की गर्दन जैसा यह सुन्दर नीला रंग उच्चकोटि के कीमती लाजवर्त (Lapis Lazuli) रत्न को घिसकर बनाया हुआ है.
काले रंग के लिए काजल का उपयोग किया गया है जो की तिल्ली के तेल के दीपक के धुएं से बनाया जाता था. आमेर जैन मंदिर में कई सुन्दर उपदेश भी लिखे हुए हैं और मुख्यतः इन्हे काले रंग से लिखा गया है. इन रंगों के अलावा अन्य रंगों और सोने का भी प्रयोग किया गया है.
इस मंदिर के सम्वन्ध में एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है की लगभग दो सौ साल पहले खरतर गच्छीय श्री शिवचंद्र गणि ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था एवं उसी समय यहीं पर "नंदीश्वर द्वीप" की पजा की रचना की थी. आश्विन शुक्ल तृतीया के दिन आज भी यहाँ मेला भरता है और नंदीश्वर द्वीप का पूजन होता है जिसमे हज़ारों श्रद्धालु भाग लेते हैं.
यह मंदिर हमारी प्राचीन धरोहर है जिन्हे निहारने और सँवारने की जरुरत है.
नंदीश्वर द्वीप प्राचीन चित्रकला |
आमेर जैन मंदिर की अद्भुत चित्रकला अष्टापद तीर्थ |
Travel Jaipur: Historic Jain temple in Amber
आमेर मंदिर का द्वार |
मंदिर द्वार पर राजपूत शैली की चित्रकला |
अमर जैन मंदिर का रंगमण्डप |
मूलगंभारे के गुम्बज की चित्रकला |
मूलगंभारे की सुन्दर चित्रकारी |
Thanks,
Jyoti Kothari
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