पौष दशमी का जुलुश और ऐतिहासिक रथ
पिछले ब्लॉग में मैंने इस वर्ष होनेवाले पौष दशमी कार्यक्रम के बारे में लिखा था एवं उसमे ऐतिहासिक रथ के बारे में बताया था. यह रथ एक ऐतिहासिक विरासत है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है. इस रथ का निर्माण श्री मांगीलाल जी जांगिड़ नाम के कलाकार ने करना शुरू किया था (सन १८६९) परन्तु वह अपने जीवन काल में इसका निर्माण पूरा नहीं कर पाए. उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र श्री जयलाल जी ने इसका निर्माण पूरा किया. इस रथ को बनाने में ३५ वर्ष का लम्बा समय लगा. जब पौष बड़ी नवमी, सम्वत १९६१ (ईस्वी सन १९०४) में पहली बार यह रथ पार्श्वनाथ भगवन की शोभायात्रा में निकला तब जयपुर की जनमेदिनी इसे देखने के लिए उमड़ पड़ी थी. तब से ले कर आज तक यह रथ पौष दशमी के जुलुश में निकलता है. श्री जैन श्वेताम्बर खरतर गच्छ संघ, जयपुर के लिए तब से ले कर आज तक यह रथ गौरव का विषय बना हुआ है.
मोहनबाड़ी में खड़ा भव्य रथ |
जयलाल जी के पुत्र छाजुलाल जी ने भी इस काम को बखूबी संभाला. अब उनके पुत्र गिरधारी जी जांगिड़ भी इस रथ की सार संभाल कर रहे हैं. हर साल पौष दशमी के वरघोड़े से पहले वे स्वयं इस रथ के रख रखाव का काम सँभालते हैं और जुलुश में रथ को चलाने का काम करते हैं. ७३ वर्षीय गिरधारी जी ने स्मृतिचारण करते हुए बताया की इस रथ से उनका पांच पीढ़ी का सम्वन्ध है. उन्होंने यह भी बताया की लगभग ५० साल पहले उनके ताऊजी ने इस रथ की मशीन बदल कर इसकी गति में वृद्धि की थी. पांच वर्ष पहले उन्होंने मुझे ३०-४० वर्ष पहले खींचे हुए रथ के ४ चित्र दिए थे जिन्हे मैंने उस समय ब्लॉग में पोस्ट किया था.
इस भव्य रथ का मुख्य आकर्षण इसमें जोते हुए दो सफ़ेद रंग के घोड़े हैं. यह घोड़े अत्यंत वलिष्ठ दीखते हैं और इनकी शान ही निराली है. भव्य साज के साथ इन दोनों घोड़ों को जो भी देखता है वो इसकी तारीफ किये बिना नहीं रह सकता. ६ पहियोंवाला यह रथ भी अपने आप में भव्यता लिए हुए है. सुन्दर कलात्मक कारीगरी एवं सोने का काम इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाता है. रथ के ऊपर बना हुआ गुम्बज अपनी शोभा से सभी का मन मोह लेता है.
Thanks,
Jyoti Kothari