परम पूज्या साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी एक महान साधिका थीं. वे समता मूर्ति एवं जप साधिका थीं. लम्बी बीमारी उनकी साधना को कमजोर नहीं कर पाई. वे एक विदुषी साध्वी थीं एवं संस्कृत, प्राकृत अदि भाषाओँ का अच्छा ज्ञान रखती थीं. उन्होंने सुदीर्घ संयम काल में आगमों एवं अन्य शाश्त्रों का भी खूब अध्ययन किया था.
गत वर्ष, जुलाई महीने के मध्य में मालपुरा में जब उनका स्वास्थ्य ख़राब हुआ तब उनसे इलाज हेतु जयपुर आने की विनती की. उन्होंने मुझसे कहा की मुझे दादागुरु के शरण में ही रहने दो. इसके एक दिन बाद ही उनका स्वास्थ्य ज्यादा ख़राब हो गया एवं मालपुरा में ही उन्हें अस्पताल में भारती कराया गया. वहां अपेक्षित सुधर नहीं होने पर जयपुर में दुर्लभजी अस्पताल में भर्ती कराया गया. कुछ दिनों में उनकी तवियत में सुधर हुआ एवं उन्हें दादाबाड़ी ला कर रखा गया. इस पुरे दौर में उनकी समता देखने लायक थी. इतनी वेदना में भी कभी उफ नहीं. निरंतर जप साधना में निमग्न रहना एवं आगंतुकों को मंगल आशीर्वाद देना.
उनका स्वास्थ्य फिर बिगड़ा एवं उन्हें पुनः अस्पताल ले जाना पड़ा. इस बार वे संभल नहीं पाई. दिमागी टीबी के साथ लकवे ने उन्हें जकड लिया. धीरे धीरे उन्होंने बोलना भी बंद कर दिया, खाना पीना सब नली से. ऐसी स्थिति में भी कोई उफ नहीं, समता की साधना.
साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी का जन्म सन १९४० में मुल्तान में हुआ. भारत विभाजन के समय वे अपने परिवार के साथ ७ वर्ष की उम्र में वहां से भारत आ गईं. १६ वर्ष की अल्प आयु में उन्होंने स्व. प्रवर्तिनी श्री विचक्षण श्री जी के पास पलिताना में दीक्षा अंगीकार की. उनकी बड़ी दीक्षा अजमेर में दादा जिन दत्त सूरी की अष्टम शताब्दी महोत्सव के दौरान हुआ. आपने लगभग ५६ वर्ष तक चरित्र का पालन किया एवं अंतिम आराधना व संथारा पूर्वक मिति चैत्र वादी दूज संवत २०६९ को प्रातः काल आपका जयपुर में देवलोकगमन हुआ. आपका अंतिम संस्कार समारोह पूर्वक आदर्शनगर श्मशान में उसी दिन दोपहर को किया गया.
आपकी दोनों बड़ी बहने (साध्वी चन्द्रकला श्री एवं साध्वी सुलोचना श्री) भी दीक्षित हैं एवं इस समय मालपुरा में विराज रहीं हैं.
साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी की गुणानुवाद सभा
Sadhvi Sudarshana Sri Ji left for her heavenly abode
Thanks,
Jyoti Kothari
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